ऑनलाइन उपस्थिति पर सरकार की तेजी, लेकिन शिक्षकों की समस्याओं पर चुप्पी — क्या मंशा प्रताड़ित करने की है?
ऑनलाइन उपस्थिति पर सरकार की तेजी, लेकिन शिक्षकों की समस्याओं पर चुप्पी — क्या मंशा प्रताड़ित करने की है?
राज्य सरकार ने शिक्षकों की ऑनलाइन उपस्थिति प्रणाली (Online Attendance System) को लागू करने का निर्णय बेहद तेजी से लिया है। इसके लिए न सिर्फ आदेश जारी किए गए, बल्कि इसे लागू करने हेतु एक विशेष समिति भी गठित कर दी गई है।
लेकिन शिक्षकों के बीच सवाल उठ रहा है कि सरकार न्यायालय के अन्य आदेशों को लेकर इतनी तत्पर क्यों नहीं है?
न्यायालय के आदेश और अनसुनी मांगें
न्यायालय ने पहले कई बार यह निर्देश दिए हैं कि शिक्षकों को बीएलओ (BLO) और निर्वाचन कार्यों से मुक्त किया जाए। साथ ही, यह भी कहा गया है कि प्रभारी प्रधानाध्यापक को प्रधानाध्यापक के समान वेतन दिया जाए। मगर इन निर्णयों पर अमल करने में सरकार ने अब तक कोई गंभीरता नहीं दिखाई है।
ऑनलाइन उपस्थिति — क्या यह समाधान है या दंड?
इसके उलट, ऑनलाइन उपस्थिति जैसी योजनाओं को इतनी तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है, मानो शिक्षकों को “मशीन” समझ लिया गया हो।
भौगोलिक और सामाजिक चुनौतियाँ
राज्य के अधिकतर विद्यालय ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में स्थित हैं। कई स्थानों पर बिजली की समस्या, सड़क और नेटवर्क की कमी, और मौसमी प्रभाव (बारिश, बाढ़, गर्मी) जैसी चुनौतियाँ आम हैं। ऐसे में प्रतिदिन ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज करना व्यवहारिक रूप से संभव ही नहीं है। शिक्षकों का कहना है कि यह योजना शिक्षकों को परेशान करने के लिए थोपी जा रही है, न कि व्यवस्था सुधारने के लिए।
स्थानांतरण नीति में उपेक्षा
शिक्षक संगठनों का कहना है कि सरकार शिक्षकों की स्थानांतरण नीति (Transfer Policy) पर भी गंभीर नहीं है। कई शिक्षक वर्षों से दूसरे जनपदों में कार्यरत हैं, अपने परिवार और बच्चों से दूर रह रहे हैं। यहाँ तक कि पति-पत्नी दोनों एक ही विभाग में कार्यरत होने के बावजूद उन्हें एक ही जिले में नियुक्त नहीं किया जा रहा है।
शिक्षकों की आवाज़
शिक्षक नेताओं का कहना है कि सरकार को यह समझना चाहिए कि हर गाँव में एक विद्यालय होता है, लेकिन हर गाँव की भौगोलिक और सामाजिक स्थिति अलग होती है। ऑनलाइन उपस्थिति जैसे निर्णय व्यवहारिक न होकर केवल कागजी हैं। सरकार को चाहिए कि वह शिक्षकों को प्रताड़ित करने की बजाय उनके मूलभूत अधिकारों और सुविधाओं पर ध्यान दे।
ऑनलाइन उपस्थिति पर सरकार की तेजी, लेकिन शिक्षकों की समस्याओं पर चुप्पी — क्या मंशा प्रताड़ित करने की है?
राज्य सरकार ने शिक्षकों की ऑनलाइन उपस्थिति प्रणाली (Online Attendance System) को लागू करने का निर्णय बेहद तेजी से लिया है। इसके लिए न सिर्फ आदेश जारी किए गए, बल्कि इसे लागू करने हेतु एक विशेष समिति भी गठित कर दी गई है।
लेकिन शिक्षकों के बीच सवाल उठ रहा है कि सरकार न्यायालय के अन्य आदेशों को लेकर इतनी तत्पर क्यों नहीं है?
न्यायालय के आदेश और अनसुनी मांगें
न्यायालय ने पहले कई बार यह निर्देश दिए हैं कि शिक्षकों को बीएलओ (BLO) और निर्वाचन कार्यों से मुक्त किया जाए। साथ ही, यह भी कहा गया है कि प्रभारी प्रधानाध्यापक को प्रधानाध्यापक के समान वेतन दिया जाए। मगर इन निर्णयों पर अमल करने में सरकार ने अब तक कोई गंभीरता नहीं दिखाई है।
ऑनलाइन उपस्थिति — क्या यह समाधान है या दंड?
इसके उलट, ऑनलाइन उपस्थिति जैसी योजनाओं को इतनी तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है, मानो शिक्षकों को “मशीन” समझ लिया गया हो।
भौगोलिक और सामाजिक चुनौतियाँ
राज्य के अधिकतर विद्यालय ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में स्थित हैं। कई स्थानों पर बिजली की समस्या, सड़क और नेटवर्क की कमी, और मौसमी प्रभाव (बारिश, बाढ़, गर्मी) जैसी चुनौतियाँ आम हैं। ऐसे में प्रतिदिन ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज करना व्यवहारिक रूप से संभव ही नहीं है। शिक्षकों का कहना है कि यह योजना शिक्षकों को परेशान करने के लिए थोपी जा रही है, न कि व्यवस्था सुधारने के लिए।
स्थानांतरण नीति में उपेक्षा
शिक्षक संगठनों का कहना है कि सरकार शिक्षकों की स्थानांतरण नीति (Transfer Policy) पर भी गंभीर नहीं है। कई शिक्षक वर्षों से दूसरे जनपदों में कार्यरत हैं, अपने परिवार और बच्चों से दूर रह रहे हैं। यहाँ तक कि पति-पत्नी दोनों एक ही विभाग में कार्यरत होने के बावजूद उन्हें एक ही जिले में नियुक्त नहीं किया जा रहा है।
शिक्षकों की आवाज़
शिक्षक नेताओं का कहना है कि सरकार को यह समझना चाहिए कि हर गाँव में एक विद्यालय होता है, लेकिन हर गाँव की भौगोलिक और सामाजिक स्थिति अलग होती है। ऑनलाइन उपस्थिति जैसे निर्णय व्यवहारिक न होकर केवल कागजी हैं। सरकार को चाहिए कि वह शिक्षकों को प्रताड़ित करने की बजाय उनके मूलभूत अधिकारों और सुविधाओं पर ध्यान दे।

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