शिक्षकों के मोबाइल में 33 ऐप — पढ़ाई से ज़्यादा रिपोर्टिंग पर ध्यान

शिक्षकों के मोबाइल में ऐप्स का बोझ — पढ़ाई से ज़्यादा रिपोर्टिंग पर ध्यान

शिक्षकों के मोबाइल में ऐप्स का बोझ — पढ़ाई से ज़्यादा रिपोर्टिंग पर ध्यान

प्रयागराज। परिषदीय विद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए अब मोबाइल फ़ोन सिर्फ़ पढ़ाई का साधन नहीं, बल्कि रिपोर्टिंग और प्रशासनिक काम का मुख्य माध्यम बन गया है। एक शिक्षक के स्मार्टफ़ोन में औसतन 30 से अधिक सरकारी ऐप्स इंस्टॉल हैं। इन ऐप्स के माध्यम से उन्हें विद्यार्थियों की उपस्थिति, मिड-डे मील विवरण, प्रशिक्षण रिपोर्ट, मूल्यांकन रिपोर्ट और तमाम प्रकार की गतिविधियों की जानकारी प्रतिदिन भेजनी होती है।

शिक्षकों का कहना है कि इन लगातार बढ़ते ऐप्स और तकनीकी कार्यों के कारण उनकी वास्तविक शिक्षण गतिविधियों पर असर पड़ रहा है। दिनभर मोबाइल पर डेटा अपलोड करने, स्क्रीनशॉट भेजने और रिपोर्ट भरने में इतना समय चला जाता है कि बच्चों को पढ़ाने का समय घट गया है।

📱 33 ऐप्स का दबाव

शिक्षकों के फ़ोन में प्रेरणा, प्रेरणा डीबीटी, दीक्षा, रीड अलॉन्ग, निर्माण प्लस, सक्षम, उत्सव, समग्र, यू-डायस, आयुष्मान भारत, निष्ठा, गूगल फॉर्म्स, मिड डे मील ऐप, पुस्तकालय मॉनिटरिंग, मिशन प्रेरणा, मानव संपदा और कई अन्य एप्स मौजूद हैं। हर ऐप का उद्देश्य अलग है — कोई हाजिरी के लिए, कोई गतिविधि रिपोर्ट के लिए, तो कोई विद्यार्थियों के मूल्यांकन के लिए। लेकिन इन सभी को एक साथ संभालना शिक्षकों के लिए चुनौती बन गया है।

🧑‍🏫 शिक्षकों की परेशानी

अनेक शिक्षकों का कहना है कि जब वे मोबाइल पर रिपोर्टिंग करते हैं तो अभिभावक आरोप लगाते हैं कि “शिक्षक पढ़ाते नहीं, मोबाइल चलाते रहते हैं।” और जब मोबाइल पर रिपोर्टिंग नहीं करते, तो अधिकारी नाराज़ होते हैं और पूछताछ शुरू कर देते हैं।

एक शिक्षक ने बताया, “हम पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन मोबाइल रिपोर्टिंग और मीटिंग्स में सारा समय निकल जाता है। दिन में चार बार किसी न किसी ऐप पर उपस्थिति या गतिविधि भेजनी होती है।”

🏫 शिक्षण से ध्यान भटकने की चिंता

शिक्षाविदों का मानना है कि तकनीकी साधनों का उपयोग शिक्षा में सुधार के लिए होना चाहिए, न कि शिक्षक पर बोझ डालने के लिए। मोबाइल ऐप्स से रिपोर्टिंग आसान हो सकती है, लेकिन जब ऐप्स की संख्या 30 से अधिक हो जाती है, तो यह सिस्टम स्वयं में एक बोझ बन जाता है। इससे शिक्षण कार्य का समय घटता है और शिक्षक केवल डेटा ऑपरेटर बनकर रह जाते हैं।

⚙️ प्रशासन का पक्ष

विभागीय अधिकारियों का कहना है कि सभी ऐप्स अलग-अलग उद्देश्यों के लिए बनाए गए हैं — कुछ से विद्यालय की निगरानी होती है तो कुछ से छात्रों की प्रगति मापी जाती है। हालांकि, वे यह भी मानते हैं कि भविष्य में कुछ ऐप्स को मिलाकर एकीकृत प्लेटफ़ॉर्म बनाया जा सकता है, ताकि शिक्षकों को राहत मिले और रिपोर्टिंग आसान हो।

🔍 निष्कर्ष

तकनीकी साधन शिक्षा का हिस्सा हैं, लेकिन इनका उद्देश्य शिक्षण को सरल बनाना होना चाहिए, न कि शिक्षक पर अतिरिक्त बोझ डालना। यदि सभी ऐप्स को एकीकृत कर दिया जाए तो शिक्षक का समय बच्चों को पढ़ाने में लग सकेगा और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार संभव होगा।

स्रोत: मीडिया रिपोर्ट्स

शिक्षकों के मोबाइल में ऐप्स का बोझ — पढ़ाई से ज़्यादा रिपोर्टिंग पर ध्यान

शिक्षकों के मोबाइल में ऐप्स का बोझ — पढ़ाई से ज़्यादा रिपोर्टिंग पर ध्यान

प्रयागराज। परिषदीय विद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए अब मोबाइल फ़ोन सिर्फ़ पढ़ाई का साधन नहीं, बल्कि रिपोर्टिंग और प्रशासनिक काम का मुख्य माध्यम बन गया है। एक शिक्षक के स्मार्टफ़ोन में औसतन 30 से अधिक सरकारी ऐप्स इंस्टॉल हैं। इन ऐप्स के माध्यम से उन्हें विद्यार्थियों की उपस्थिति, मिड-डे मील विवरण, प्रशिक्षण रिपोर्ट, मूल्यांकन रिपोर्ट और तमाम प्रकार की गतिविधियों की जानकारी प्रतिदिन भेजनी होती है।

शिक्षकों का कहना है कि इन लगातार बढ़ते ऐप्स और तकनीकी कार्यों के कारण उनकी वास्तविक शिक्षण गतिविधियों पर असर पड़ रहा है। दिनभर मोबाइल पर डेटा अपलोड करने, स्क्रीनशॉट भेजने और रिपोर्ट भरने में इतना समय चला जाता है कि बच्चों को पढ़ाने का समय घट गया है।

📱 33 ऐप्स का दबाव

शिक्षकों के फ़ोन में प्रेरणा, प्रेरणा डीबीटी, दीक्षा, रीड अलॉन्ग, निर्माण प्लस, सक्षम, उत्सव, समग्र, यू-डायस, आयुष्मान भारत, निष्ठा, गूगल फॉर्म्स, मिड डे मील ऐप, पुस्तकालय मॉनिटरिंग, मिशन प्रेरणा, मानव संपदा और कई अन्य एप्स मौजूद हैं। हर ऐप का उद्देश्य अलग है — कोई हाजिरी के लिए, कोई गतिविधि रिपोर्ट के लिए, तो कोई विद्यार्थियों के मूल्यांकन के लिए। लेकिन इन सभी को एक साथ संभालना शिक्षकों के लिए चुनौती बन गया है।

🧑‍🏫 शिक्षकों की परेशानी

अनेक शिक्षकों का कहना है कि जब वे मोबाइल पर रिपोर्टिंग करते हैं तो अभिभावक आरोप लगाते हैं कि “शिक्षक पढ़ाते नहीं, मोबाइल चलाते रहते हैं।” और जब मोबाइल पर रिपोर्टिंग नहीं करते, तो अधिकारी नाराज़ होते हैं और पूछताछ शुरू कर देते हैं।

एक शिक्षक ने बताया, “हम पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन मोबाइल रिपोर्टिंग और मीटिंग्स में सारा समय निकल जाता है। दिन में चार बार किसी न किसी ऐप पर उपस्थिति या गतिविधि भेजनी होती है।”

🏫 शिक्षण से ध्यान भटकने की चिंता

शिक्षाविदों का मानना है कि तकनीकी साधनों का उपयोग शिक्षा में सुधार के लिए होना चाहिए, न कि शिक्षक पर बोझ डालने के लिए। मोबाइल ऐप्स से रिपोर्टिंग आसान हो सकती है, लेकिन जब ऐप्स की संख्या 30 से अधिक हो जाती है, तो यह सिस्टम स्वयं में एक बोझ बन जाता है। इससे शिक्षण कार्य का समय घटता है और शिक्षक केवल डेटा ऑपरेटर बनकर रह जाते हैं।

⚙️ प्रशासन का पक्ष

विभागीय अधिकारियों का कहना है कि सभी ऐप्स अलग-अलग उद्देश्यों के लिए बनाए गए हैं — कुछ से विद्यालय की निगरानी होती है तो कुछ से छात्रों की प्रगति मापी जाती है। हालांकि, वे यह भी मानते हैं कि भविष्य में कुछ ऐप्स को मिलाकर एकीकृत प्लेटफ़ॉर्म बनाया जा सकता है, ताकि शिक्षकों को राहत मिले और रिपोर्टिंग आसान हो।

🔍 निष्कर्ष

तकनीकी साधन शिक्षा का हिस्सा हैं, लेकिन इनका उद्देश्य शिक्षण को सरल बनाना होना चाहिए, न कि शिक्षक पर अतिरिक्त बोझ डालना। यदि सभी ऐप्स को एकीकृत कर दिया जाए तो शिक्षक का समय बच्चों को पढ़ाने में लग सकेगा और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार संभव होगा।

स्रोत: मीडिया रिपोर्ट्स

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