ट्रांसफर अटके, नई गाइडलाइन से शिक्षकों में असंतोष बढ़ा
शिक्षकों में असंतोष: ट्रांसफर अटके, नई गाइडलाइन से बढ़ी चिंता
उत्तर प्रदेश के परिषदीय शिक्षकों में असंतोष लगातार बढ़ता जा रहा है। एक ओर वर्षों से लंबित पड़े अंतरजनपदीय ट्रांसफर की प्रक्रिया अब तक शुरू नहीं हुई है, वहीं दूसरी ओर बेसिक शिक्षा विभाग ने शिक्षकों की उपस्थिति को लेकर नई गाइडलाइन लागू करने की तैयारी कर ली है। शिक्षकों का कहना है कि विभाग उनकी समस्याएँ समझने के बजाय केवल मशीनों के भरोसे व्यवस्था चला रहा है।
शिक्षकों का आरोप है कि पिछले कई वर्षों से ट्रांसफर की मांग को नजरअंदाज किया जा रहा है। हजारों शिक्षक लंबे समय से घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर कार्यरत हैं, लेकिन तबादला नीति लागू न होने के कारण परिवार से मिलने तक में कठिनाई होती है। इसके बावजूद विभाग अब डिजिटल अटेंडेंस और टैबलेट आधारित निगरानी की नई व्यवस्था थोप रहा है।
हाल ही में हाईकोर्ट के निर्देश के बाद विभाग ने नई गाइडलाइन तैयार करनी शुरू की है। कहा जा रहा है कि 30 अक्टूबर से पहले इसे लागू किया जा सकता है। परंतु शिक्षकों का मानना है कि इस निर्णय में उनकी कोई राय नहीं ली गई।
शिक्षक संगठनों का कहना है कि विभाग ने सालों से लंबित ट्रांसफर, संसाधनों की कमी और शिक्षकों के पारिवारिक व सामाजिक हालात पर ध्यान नहीं दिया। इसके विपरीत केवल उपस्थिति और निगरानी बढ़ाने के लिए नई मशीन-आधारित व्यवस्था तैयार कर दी गई है।
एक शिक्षक नेता ने कहा, “हम वर्षों से ट्रांसफर का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन विभाग को शिक्षकों की नहीं, मशीनों की चिंता है। बिना इंटरनेट और बिजली वाले विद्यालयों में टैबलेट से हाजिरी कैसे लगेगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं।”
कई शिक्षकों ने यह भी कहा कि बार-बार नई ऐप्स और पोर्टल्स से डेटा भरने की बाध्यता के कारण शिक्षण कार्य प्रभावित होता है। उनका कहना है कि गाइडलाइन तभी सफल होगी जब विभाग पहले शिक्षकों की वास्तविक जरूरतों को समझे और वर्षों से लंबित ट्रांसफर जैसी समस्याओं का समाधान करे।
शिक्षक संगठनों ने मांग की है कि सरकार पहले लंबित ट्रांसफर प्रक्रिया को शुरू करे और स्कूलों में सुविधाएँ उपलब्ध कराए, उसके बाद ही डिजिटल उपस्थिति जैसे प्रयोग लागू किए जाएँ। अन्यथा यह व्यवस्था केवल कागजों में ही सफल दिखाई देगी।
शिक्षकों में असंतोष: ट्रांसफर अटके, नई गाइडलाइन से बढ़ी चिंता
उत्तर प्रदेश के परिषदीय शिक्षकों में असंतोष लगातार बढ़ता जा रहा है। एक ओर वर्षों से लंबित पड़े अंतरजनपदीय ट्रांसफर की प्रक्रिया अब तक शुरू नहीं हुई है, वहीं दूसरी ओर बेसिक शिक्षा विभाग ने शिक्षकों की उपस्थिति को लेकर नई गाइडलाइन लागू करने की तैयारी कर ली है। शिक्षकों का कहना है कि विभाग उनकी समस्याएँ समझने के बजाय केवल मशीनों के भरोसे व्यवस्था चला रहा है।
शिक्षकों का आरोप है कि पिछले कई वर्षों से ट्रांसफर की मांग को नजरअंदाज किया जा रहा है। हजारों शिक्षक लंबे समय से घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर कार्यरत हैं, लेकिन तबादला नीति लागू न होने के कारण परिवार से मिलने तक में कठिनाई होती है। इसके बावजूद विभाग अब डिजिटल अटेंडेंस और टैबलेट आधारित निगरानी की नई व्यवस्था थोप रहा है।
हाल ही में हाईकोर्ट के निर्देश के बाद विभाग ने नई गाइडलाइन तैयार करनी शुरू की है। कहा जा रहा है कि 30 अक्टूबर से पहले इसे लागू किया जा सकता है। परंतु शिक्षकों का मानना है कि इस निर्णय में उनकी कोई राय नहीं ली गई।
शिक्षक संगठनों का कहना है कि विभाग ने सालों से लंबित ट्रांसफर, संसाधनों की कमी और शिक्षकों के पारिवारिक व सामाजिक हालात पर ध्यान नहीं दिया। इसके विपरीत केवल उपस्थिति और निगरानी बढ़ाने के लिए नई मशीन-आधारित व्यवस्था तैयार कर दी गई है।
एक शिक्षक नेता ने कहा, “हम वर्षों से ट्रांसफर का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन विभाग को शिक्षकों की नहीं, मशीनों की चिंता है। बिना इंटरनेट और बिजली वाले विद्यालयों में टैबलेट से हाजिरी कैसे लगेगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं।”
कई शिक्षकों ने यह भी कहा कि बार-बार नई ऐप्स और पोर्टल्स से डेटा भरने की बाध्यता के कारण शिक्षण कार्य प्रभावित होता है। उनका कहना है कि गाइडलाइन तभी सफल होगी जब विभाग पहले शिक्षकों की वास्तविक जरूरतों को समझे और वर्षों से लंबित ट्रांसफर जैसी समस्याओं का समाधान करे।
शिक्षक संगठनों ने मांग की है कि सरकार पहले लंबित ट्रांसफर प्रक्रिया को शुरू करे और स्कूलों में सुविधाएँ उपलब्ध कराए, उसके बाद ही डिजिटल उपस्थिति जैसे प्रयोग लागू किए जाएँ। अन्यथा यह व्यवस्था केवल कागजों में ही सफल दिखाई देगी।

टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें