UPTET: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, शिक्षकों की पदोन्नति पर फिर अटका मामला
उत्तर प्रदेश में परिषदीय विद्यालयों के हज़ारों शिक्षकों के लिए मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रहीं। दरअसल, जो शिक्षक अब तक शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास नहीं कर पाए हैं, उनकी पदोन्नति की प्रक्रिया एक बार फिर रोक दी गई है। सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के बाद स्थिति और उलझ गई है। इसी को लेकर बेसिक शिक्षा विभाग ने 16 सितम्बर को सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। अब सबकी नज़रें कोर्ट के निर्णय और केंद्र सरकार की पहल पर टिकी हैं।
वर्तमान में प्रदेश के परिषदीय स्कूलों में लगभग 4.59 लाख शिक्षक कार्यरत हैं। इनमें से करीब 1.86 लाख शिक्षक वर्ष 2010 से पहले नियुक्त हुए थे और उन्होंने टीईटी उत्तीर्ण नहीं किया। अदालत के आदेश के अनुसार जिन शिक्षकों की सेवा पाँच साल से अधिक हो चुकी है, उन्हें दो वर्ष के भीतर टीईटी पास करना अनिवार्य होगा। पदोन्नति की प्रक्रिया में भी यह शर्त लागू रहेगी।
शिक्षक संगठनों ने इस स्थिति पर नाराज़गी जताई है। संगठन की पदाधिकारियों का कहना है कि 2010 में शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून लागू होने से पहले नियुक्त शिक्षकों पर यह नियम लागू नहीं होना चाहिए। उनका तर्क है कि पुराने शिक्षकों की सेवा सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। वहीं, विधि विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक केंद्र सरकार इस पर स्पष्ट रुख नहीं अपनाती, तब तक शिक्षकों को राहत मिलना मुश्किल है।
उत्तर प्रदेश में परिषदीय विद्यालयों के हज़ारों शिक्षकों के लिए मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रहीं। दरअसल, जो शिक्षक अब तक शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास नहीं कर पाए हैं, उनकी पदोन्नति की प्रक्रिया एक बार फिर रोक दी गई है। सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के बाद स्थिति और उलझ गई है। इसी को लेकर बेसिक शिक्षा विभाग ने 16 सितम्बर को सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। अब सबकी नज़रें कोर्ट के निर्णय और केंद्र सरकार की पहल पर टिकी हैं।
वर्तमान में प्रदेश के परिषदीय स्कूलों में लगभग 4.59 लाख शिक्षक कार्यरत हैं। इनमें से करीब 1.86 लाख शिक्षक वर्ष 2010 से पहले नियुक्त हुए थे और उन्होंने टीईटी उत्तीर्ण नहीं किया। अदालत के आदेश के अनुसार जिन शिक्षकों की सेवा पाँच साल से अधिक हो चुकी है, उन्हें दो वर्ष के भीतर टीईटी पास करना अनिवार्य होगा। पदोन्नति की प्रक्रिया में भी यह शर्त लागू रहेगी।
शिक्षक संगठनों ने इस स्थिति पर नाराज़गी जताई है। संगठन की पदाधिकारियों का कहना है कि 2010 में शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून लागू होने से पहले नियुक्त शिक्षकों पर यह नियम लागू नहीं होना चाहिए। उनका तर्क है कि पुराने शिक्षकों की सेवा सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। वहीं, विधि विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक केंद्र सरकार इस पर स्पष्ट रुख नहीं अपनाती, तब तक शिक्षकों को राहत मिलना मुश्किल है।
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