सेवारत शिक्षकों पर TET की अनिवार्यता क्यों? – कासगंज से उठी बड़ी आवाज़*क्या है मायने
कासगंज से एक बार फिर बेसिक और जूनियर हाईस्कूल शिक्षकों की आवाज़ उठी है। जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ ने सरकार से मांग की है कि सेवारत (पहले से नौकरी कर रहे) शिक्षकों को शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) से बाहर रखा जाए।
क्या है मामला?
हर शिक्षक संगठन अपने जिले में प्रयासरत है। क्योंकि माननीय न्यायालय के आदेश से लाखों शिक्षक प्रभावित हो रहे है।
दरअसल, NCTE ने 23 अगस्त 2010 को TET की अधिसूचना जारी की थी और इसके बाद शिक्षा अधिकार अधिनियम-2011 में इसे लागू किया गया। संघ का कहना है कि 2010 से पहले नियुक्त हुए शिक्षकों पर इस नियम को थोपना अनुचित है, क्योंकि वे उस समय की योग्यता शर्तें पूरी करके ही नियुक्त हुए थे।
संघ की दलीलें
देशभर में करीब 40 लाख शिक्षक इससे प्रभावित होंगे।
यूपी में करीब 2 लाख की संख्या बताई जा रही है।
कई शिक्षक अब सेवा के अंतिम वर्षों में हैं, ऐसे में नई परीक्षा देना उनके लिए मुश्किल है।
ऐसा तो फिर हर विभाग में कर देना चाहिए।
पुराने शिक्षकों की योग्यता इंटरमीडिएट + BTC रही है, जबकि अब स्नातक + B.Ed./BTC की अनिवार्यता है।
उस समय टेट की व्यवस्था थी नहीं।
परीक्षा में आयु सीमा 40 वर्ष तय होने के कारण बहुत से शिक्षक पात्र ही नहीं रह जाते।
मृतक आश्रितों के तहत नियुक्त शिक्षकों को भी यह नियम रोक देगा, क्योंकि उन्हें पहले प्रशिक्षण की छूट मिली हुई थी।
शिक्षकों की चिंता
संघ का कहना है कि अगर इन नियमों को जबरन लागू किया गया तो हजारों परिवारों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। “सेवा में रहते हुए योग्यता के नाम पर परीक्षा का बोझ डालना न्यायसंगत नहीं है,” — संघ के जिला अध्यक्ष देवेंद्र सिंह यादव ने कहा।
आगे क्या?
संघ ने एसडीएम मोहम्मद नासिर को ज्ञापन सौंपा और सरकार से मांग की कि इस फैसले पर पुनर्विचार किया जाए। साथ ही शिक्षकों ने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आंदोलन को और तेज़ किया जाएगा।
मेरे सुझाव से सब पूरे जोश से लगे रहे कोई अच्छा हल निकलेगा।
कासगंज से एक बार फिर बेसिक और जूनियर हाईस्कूल शिक्षकों की आवाज़ उठी है। जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ ने सरकार से मांग की है कि सेवारत (पहले से नौकरी कर रहे) शिक्षकों को शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) से बाहर रखा जाए।
क्या है मामला?
हर शिक्षक संगठन अपने जिले में प्रयासरत है। क्योंकि माननीय न्यायालय के आदेश से लाखों शिक्षक प्रभावित हो रहे है।
दरअसल, NCTE ने 23 अगस्त 2010 को TET की अधिसूचना जारी की थी और इसके बाद शिक्षा अधिकार अधिनियम-2011 में इसे लागू किया गया। संघ का कहना है कि 2010 से पहले नियुक्त हुए शिक्षकों पर इस नियम को थोपना अनुचित है, क्योंकि वे उस समय की योग्यता शर्तें पूरी करके ही नियुक्त हुए थे।
संघ की दलीलें
देशभर में करीब 40 लाख शिक्षक इससे प्रभावित होंगे।
यूपी में करीब 2 लाख की संख्या बताई जा रही है।
कई शिक्षक अब सेवा के अंतिम वर्षों में हैं, ऐसे में नई परीक्षा देना उनके लिए मुश्किल है।
ऐसा तो फिर हर विभाग में कर देना चाहिए।
पुराने शिक्षकों की योग्यता इंटरमीडिएट + BTC रही है, जबकि अब स्नातक + B.Ed./BTC की अनिवार्यता है।
उस समय टेट की व्यवस्था थी नहीं।
परीक्षा में आयु सीमा 40 वर्ष तय होने के कारण बहुत से शिक्षक पात्र ही नहीं रह जाते।
मृतक आश्रितों के तहत नियुक्त शिक्षकों को भी यह नियम रोक देगा, क्योंकि उन्हें पहले प्रशिक्षण की छूट मिली हुई थी।
शिक्षकों की चिंता
संघ का कहना है कि अगर इन नियमों को जबरन लागू किया गया तो हजारों परिवारों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। “सेवा में रहते हुए योग्यता के नाम पर परीक्षा का बोझ डालना न्यायसंगत नहीं है,” — संघ के जिला अध्यक्ष देवेंद्र सिंह यादव ने कहा।
आगे क्या?
संघ ने एसडीएम मोहम्मद नासिर को ज्ञापन सौंपा और सरकार से मांग की कि इस फैसले पर पुनर्विचार किया जाए। साथ ही शिक्षकों ने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आंदोलन को और तेज़ किया जाएगा।
मेरे सुझाव से सब पूरे जोश से लगे रहे कोई अच्छा हल निकलेगा।
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