सुप्रीम कोर्ट में टीईटी अनिवार्यता पर विवाद, तमिलनाडु सरकार ने दी चुनौती
देशभर के लाखों शिक्षकों के लिए राहत और चिंता दोनों साथ लेकर आया है सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला। अदालत ने आदेश दिया है कि जिन शिक्षकों की सेवा अवधि पाँच वर्ष से अधिक हो चुकी है, उन्हें दो साल के भीतर शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) पास करना अनिवार्य होगा। इसी आदेश को चुनौती देते हुए तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुँची है।
शिक्षा व्यवस्था पर संभावित असर
राज्य सरकार का कहना है कि वर्तमान में सरकारी स्कूलों में लगभग 4.5 लाख शिक्षक कार्यरत हैं, जिनमें से करीब 3.9 लाख अभी तक TET उत्तीर्ण नहीं कर पाए हैं। यदि यह शर्त तत्काल लागू होती है तो लाखों बच्चों की पढ़ाई बाधित होगी और पूरी शिक्षा व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। सरकार का तर्क है कि यह स्थिति शिक्षा का अधिकार अधिनियम के उद्देश्य को भी प्रभावित कर सकती है।
पुराने शिक्षकों पर अनिवार्यता अनुचित?
याचिका में कहा गया है कि पहले से नियुक्त शिक्षकों को अचानक परीक्षा की बाध्यता में लाना उचित नहीं है। इसके स्थान पर इन-सर्विस ट्रेनिंग, डिप्लोमा कोर्स या रिफ्रेशर प्रोग्राम जैसे विकल्प उपलब्ध कराए जा सकते हैं। इससे शिक्षकों की आजीविका सुरक्षित रहेगी और बच्चों की शिक्षा भी प्रभावित नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट से राज्य की अपील
तमिलनाडु सरकार का कहना है कि TET की बाध्यता केवल 1 अप्रैल 2010 के बाद नियुक्त शिक्षकों पर ही लागू होनी चाहिए। पुराने शिक्षकों को इसके दायरे में लाना न्यायसंगत नहीं है। राज्य ने दलील दी कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 23(1) केवल भविष्य की नियुक्तियों पर लागू होती है, जबकि धारा 23(2) पहले से कार्यरत अप्रशिक्षित शिक्षकों को छूट देने का अधिकार देती है।
देशभर के शिक्षकों पर असर
विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला सीधे तौर पर देशभर के लगभग 98 लाख शिक्षकों को प्रभावित कर सकता है। अब सभी की नज़रें अदालत के निर्णय पर टिकी हैं, जो यह तय करेगा कि शिक्षा व्यवस्था में स्थिरता बनी रहेगी या फिर बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे।
देशभर के लाखों शिक्षकों के लिए राहत और चिंता दोनों साथ लेकर आया है सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला। अदालत ने आदेश दिया है कि जिन शिक्षकों की सेवा अवधि पाँच वर्ष से अधिक हो चुकी है, उन्हें दो साल के भीतर शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) पास करना अनिवार्य होगा। इसी आदेश को चुनौती देते हुए तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुँची है।
शिक्षा व्यवस्था पर संभावित असर
राज्य सरकार का कहना है कि वर्तमान में सरकारी स्कूलों में लगभग 4.5 लाख शिक्षक कार्यरत हैं, जिनमें से करीब 3.9 लाख अभी तक TET उत्तीर्ण नहीं कर पाए हैं। यदि यह शर्त तत्काल लागू होती है तो लाखों बच्चों की पढ़ाई बाधित होगी और पूरी शिक्षा व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। सरकार का तर्क है कि यह स्थिति शिक्षा का अधिकार अधिनियम के उद्देश्य को भी प्रभावित कर सकती है।
पुराने शिक्षकों पर अनिवार्यता अनुचित?
याचिका में कहा गया है कि पहले से नियुक्त शिक्षकों को अचानक परीक्षा की बाध्यता में लाना उचित नहीं है। इसके स्थान पर इन-सर्विस ट्रेनिंग, डिप्लोमा कोर्स या रिफ्रेशर प्रोग्राम जैसे विकल्प उपलब्ध कराए जा सकते हैं। इससे शिक्षकों की आजीविका सुरक्षित रहेगी और बच्चों की शिक्षा भी प्रभावित नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट से राज्य की अपील
तमिलनाडु सरकार का कहना है कि TET की बाध्यता केवल 1 अप्रैल 2010 के बाद नियुक्त शिक्षकों पर ही लागू होनी चाहिए। पुराने शिक्षकों को इसके दायरे में लाना न्यायसंगत नहीं है। राज्य ने दलील दी कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 23(1) केवल भविष्य की नियुक्तियों पर लागू होती है, जबकि धारा 23(2) पहले से कार्यरत अप्रशिक्षित शिक्षकों को छूट देने का अधिकार देती है।
देशभर के शिक्षकों पर असर
विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला सीधे तौर पर देशभर के लगभग 98 लाख शिक्षकों को प्रभावित कर सकता है। अब सभी की नज़रें अदालत के निर्णय पर टिकी हैं, जो यह तय करेगा कि शिक्षा व्यवस्था में स्थिरता बनी रहेगी या फिर बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे।
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